Islamic Marriage Part 07 : इंसान इंसान ही रहे जानवर न बनने पाए


इंसान इंसान ही रहे जानवर न बनने पाए; आत्महत्या के रूझान में वृद्धि; इस्लाम क्या चाहता है?; मसनून ख़ुत्बा निकाह

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन वस्सलातु वस्सलामु अला सय्यिदिल मुर्सलीन वल आक़िबतु लिल मुत्तक़ीन, अम्मा बाद!

आत्महत्या के रूझान में वृद्धि

इस ब्रहमांड को बस में करने के जुनून में फंसी लेकिन इस सृष्टि के स्वामी की बाग़ी क़ौमों को इस संसार के स्वामी ने जीवन की सबसे बड़ी दौलत ‘‘सुख़’’ से वंचति कर रखा है। भोग विलासी, शराब व ज़िना में लिप्त, हसब व नसब से वंचति पश्चिमी क़ौमों की नयी नस्लें अपराधी, निराश और डेपरेशन का शिकार होकर आत्महत्या में अपनी नजात तलाश कर रही हैं।1 बी.बी.सी. की एक रिपोर्ट के अनुसार इस समय अमेरिका में 20 लाख नौजवान ऐसे हैं जो अपना शरीर घायल करके सुख शान्ति पाते हैं। इनमें 11 प्रतिशत लड़कियाँ हैं। माहिरों के कथ्नानुसार उनकी यह हालत सख़्त निराश और डेप्रेशन की वजह से है। 1963 ई0 में अमेरिका जैसे सांसारिक संसाधनों से मालामाल देश में दस लाख लोगों ने आत्महत्या की। मार्च 1997 में अमेरिका के एक धार्मिक सम्प्रदाय हेवेन्स गेट के 39 लोगों ने जन्नत में जाने के लिए आत्महत्या की। 1978 ई0 में ग्याना दक्षिणी अफ्रीका के एक क़सबे में 9 लोगों ने मुक्ति की तलाश में ज़हरीली शराब पीकर आत्महत्या की। 1979 ई0 में केनेडा और स्वीज़रलैंड और फ्रांस में भी ऐसी ही सामूहिक आत्महत्याओं की घटनाएं घट चुकी हैं। 1982 में यूरोप के प्रख्यात धार्मिक सम्प्रदाय ‘‘द सोलन टैम्पिल’’ के अनुयायियों में भी आत्महत्या का क्रम चलता रहा। (उर्दू डाइजस्ट जून 1997)

1 अमेरिका समाचार पत्र लांस एन्जिल्स टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में हर 23 सेकेंड में एक औरत पर मुजरिमाना हमला होता है। हर चार सेकेंड के बाद चोरी होती है। 12 सेकेंड के बाद नक़ब लगती है और हर 20 सेकेंड के बाद साइकिल चोरी हो जाती है। 1995 में अमेरिका में 23305 लोग क़त्ल हुए। एक लाख 2 हज़ार 96 औरतें जिन्सी हमलों का शिकार हुईं। रिपोर्ट के अनुसार हर अमेरिकी अपने घर से जब निकतला है तो वह मानसिक रूप से तैयार होता है कि उसे किसी भी मोड़ पर लूट लिया जाएगा क्योंकि मुक़ाबला करना जान दे देने जैसा है (नवाए वक़्त 3 जनवरी 1996) प्रसिद्ध समाचार एजेन्सी ऐसोसिएटेड प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में 1985 के मुक़ाबले में अब तक अपराधों की दर में 131 प्रतिशत वृद्धि हुई है। 1990 में अमेरिका में छः लाख औरतों की इज़्ज़त लूटी गयी जबकि हत्या व मारपीट की वारदात इससे भी अधिक हैं। (नवाए वक़्त 20 दिसम्बर1991)

आइए एक नज़र इस्लामी जीवन व्यवस्थ्सस को भी निकट से देखें और फिर न्याय की तुला में फ़ैसला दें कि कौन सी जीवन व्यवस्था औरत के अधिकारों की सुरक्षा करती है और कौन सी व्यवस्था औरत के अधिकारों का शोषण कर रही है।

इस्लाम क्या चाहता है?

इस्लाम अल्लाह का भेजा हुआ दीन है जिसे अल्लाह ने इन्सानों के स्वभाव और प्रकृति के ठीक अनुसार बनाया है इसमें सन्तुलन है। इन्सान के अन्दर मौजूद हैवानी व इन्सारी भावनाओं, दोनों से इस्लाम इस प्रकार बहस करता है कि इन्सान इन्सार ही रहे जानवर न बनने पाए। इस्लामी जीवन व्यवस्था व सामाजिक व्यवस्था को समझने के लिए पहले निकाह के बारे में कुछ ज़रूरी बहस के बाद तर्क दिए गए हैं इसके बाद व्यक्ति के सुधार के लिए इस्लामी दीक्षा व प्रशिक्षण पर प्रकाश डाला गया है और अन्त में पश्चिमी और इस्लामी समाज का तुल्नात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। हमें आशा है कि इससे पाठकगण को किसी नतीजे पर पहुँचने में इन्शाअल्लाह आसानी रहेगी।

निकाह से कुछ अहम तर्क

मसनून ख़ुत्बा निकाह

शादी की रात में मर्द व औरत के इकट्ठा होने से पहले जबकि दोनों की जिन्सी भावनाओं में सख़्त उत्तेजना और तूफान पैदा होता है। इस्लाम मर्द और औरत दोनों की नफ़सानी इच्छा और उत्तेजनापूर्ण भावनाओं को मानवता के दाएरे में रखने के लिए ग्रहण एवं स्वीकृति के समय एक बहुत ही सुभाषी व तत्वपूर्ण ख़ुत्बा देता है जिसमें अल्लाह की प्रशंसा एवं स्तुति भी है जीवन के मसाइल और मुश्किलों में अल्लाह से मदद मांगने की शिक्षा, पिछले जीवन के गुनाहों पर नदामत के साथ तौबा व इस्तग़फ़ार का निर्देश भी है और आने वाले जीवन में अपने नफ़्स के शर से अल्लाह की पनाह का सवाल भी किया गया है। निकाह के ख़ुत्बे में क़ुरआन की तीन आयतों को केन्द्रीय विषय के रूप में शामिल किया गया है। इन तीनों आयतों में चार बात तक़वा को अपनाने की बड़ी सख़्त ताकीद की गयी है।

शरीअत की परिभाषा में तक़वा एक ऐसा शब्द है जिसमें अर्थों की एक दुनिया आबाद है संक्षिप्त शब्दों में यूँ समझए कि एकान्त का जीवन हो या प्रत्यक्ष का, चारदीवारी के अन्दर हो, या बाहर दिन की रोशनी में हो या रात का अंधेरा, हर समय और हर क्षण अल्लाह और उसके रसूल सल्ल0 की प्रसन्नतापूर्वक आज्ञापालन का नाम है तक़वा।

इस अवसर पर तक़वा की इतनी ताकीद का मतलब यह है कि अत्यन्त ख़ुशी के अवसर पर भी मनुष्य का दिल, दिमाग़, अंग अर्थात सारा शरीर व जान अल्लाह और उसके रसूल के आदेश के अन्तर्गत रहने चाहिए। शौतानी और हैवानी विचार व आमाल उस पर हावी नहीं होने चाहिए। मर्द को प्रकृति ने जो ज़िम्मेदारियां सौंपी हैं औरत उन्हें पूरा करे और दोनों पति पत्नी इस मामले में अल्लाह की सीमाओं को पान न करें।

निकाह का ख़ुत्बा मानो पूरे जीवन का एक संविधान है जो नए परिवार की बुनियाद रखते हुए परिवाजनों को अल्लाह और उसके रसूल सल्ल0 की ओर से प्रदान किया जाता है। निकाह का ख़ुत्बा केवल दूल्हा दुल्हन को ही नहीं बल्कि निकाह की मज्लिस में मौजूद सभी ईमान वालों को सम्बोधित करके निकाह की मज्लिस को एक भोग विलास की मज्लिस ही नहीं रहते देता बल्कि उसे एक अत्यन्त विशिष्ठ और संजीदा इबादत का दर्जा दे देता है लेकिन दुख की बात यह है कि पहले तो दूल्हा दुल्हन सहित निकाह की मज्लिस में शरीक लोगों में से निकाह के मतलब व मायनों को समझने वालों की संख्या न होने के बराबर होती है। दूसरे एक नई और पहले के मुक़ाबले अधिक ज़िम्मेदारी की जीवन यात्रा शुरू करने वाले इस नए जोड़े को भविष्य के उतार चढ़ाव से गुज़रने का सलीक़ा सिखलाने वाले इस महत्वपूर्ण ख़ुत्बे की शिक्षाओं से परिचित किया जाए।

ज़रूरत इस बात की है कि निकाह पढ़ाने वाले लोग या मज्लिसे निकाह में शामिल कोई भी दूसरा आलिम निकाह के ख़ुत्बे का अनुवाद करके उसकी संक्षिप्त व्याख्या और स्पष्टीकरण कर दे। भले व अच्छे और नेक ख़ुत्बए निकाह के आदेशों में से बहुत सी नसीहत की बातों को उम्र भर के लिए अपने पल्ले बांध लेंगे जो उनके सफ़ल दाम्पत्य जीवन की ज़मानत साबित होगी और इस तरह निकाह की मज्लिस का आयोजन किसी रस्म की बजाए एक उद्देश्यपूर्ण और लाभकारी अमल बन जाएगा। (इन्शाअल्लाह)
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