Islamic Marriage Part 06 : काश हम इस हक़ीक़त को जान जाते!

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन वस्सलातु वस्सलामु अला सय्यिदिल मुर्सलीन वल आक़िबतु लिल मुत्तक़ीन, अम्मा बाद!

पारिवारिक व्यवस्था की बर्बादी

यूरोप की औद्योगिक क्रान्ति ने औरत को आर्थिक ठहराव तो प्रदान कर दिया परन्तु पारिवारिक व्यवस्था पर उसके प्रभाव भारी पड़े। औरत जब मर्द की किफ़ालत और आर्थिक मदद से बेनियाज़ हो गयी तो फिर स्वभाविक रूप से यह सवाल पैदा हुआ कि जो औरत स्वयं कमाए वह मर्द की सेवा क्यों करे? घरदारी की ज़िम्मेदारी क्यों संभाले? ब्रिटेन की नेशनल वीमेन्स कौन्सिल की एक औरत (सदस्या) का कहना है कि यह विचार मज़बूत होता जा रहा है कि शादी करके पति की सेवा के झमेले में क्यों पड़ा जाए। बस जीवन का आनन्द लिया जाए। बहुत सी औरतें यह फ़ैसला कर चुकी हैं कि उनको अपने जीवन के लिए मर्दों के सहारे की ज़रूरत नहीं। (तकबीर 4 सितम्बर 1997)

‘‘महिला आन्दोलन’’ की ज़िम्मेदार शीला क्रोइन कहती हैं- ‘‘औरत के लिए शादी का अर्थ दासता है इसलिए महिला आन्दोलन को शादी की परम्परा पर हमला करना चाहिए। शादी की परम्परा को ख़त्म किए बिना औरत को आज़ादी प्राप्त नहीं हो सकती’’ महिला आन्दोलन से जुड़ी औरतों का कहना है कि औरत का मर्दे को चाहना और उसकी ज़रूरत महसूस करना औरत के लिए अपमान व तुच्छता का कारण है। औरतों का बच्चों और घर की देखभाल करना उनको तुच्छ बनाता है। (तकबीर 13 अप्रैल 1995)

अमेरिका में रहने वाले एक पाकिस्तानी अमेरिकी समाज पर टिप्पणी करते हुए लिखते हैं- ‘‘नयी नौजवान नस्ल में निकाह का रिवाज नहीं रहा। इसके बिना ही लड़का लड़की या मर्द औरत इकट्ठे रहते हैं बच्चे भी पैदा करते हैं और हर दो चार साल बाद अपना जीवन साथी भी बदल लेते हैं। जिस प्रकार लिबास बदला जाता है। बूढ़े माँ-बाप बुढ़ापे की पेंशन पर गुज़ारा करते करते मर जाएं तो सामान्य रूप से बेमुरव्वत औलाद दफ़नाने भी नहीं आती।’’ (उर्दू डायजेस्ट, जून 1996)

औरत की आर्थिक दृढ़ता ने न केवल निकाह का सर से बोझ उतार दिया है बल्कि तलाक़ की दर में भी अताह वृद्धि कर दी है। अमेरिकी जन गणना ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में रोज़ाना 7 हज़ार जोड़े निकाह के बंधन में बांधे जाते हैं जिनमें से तीन हजार तीन सौ पति पत्नी एक दूसरे को तलाक़ दे देते हैं। अर्थात पचास प्रतिशत निकाह तलाक़ पर आ पड़ते हैं। हक़ीक़त यह है कि पश्चिम में औरत की आज़ादी और आर्थिक दृढ़ता ने पारिवारिक व्यवस्था को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया है। नौजवान नस्ल की एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों पर आधारित है जिन्हें अपनी माँ का पता है तो बाप का पता नहीं, बाप का पता है तो माँ का पता नहीं या फिर माँ-बाप दोनों का ही पता नहीं। बहन और भाई के पवित्र रिश्ते की कल्पना तो बहुत दूर की बात है।

ख़तरनाक रोगों की अधिकता

ज़िना, बदकारी और समलिंग परस्ती की अधिकता के नतीजे में ख़तरनाक रोग (सूज़ाक, आतिश्क और एडस आदि) की अधिकता ने पूरे अमेरिका और पश्चिमी देशों को अपनी लपेट में ले रखा है। 1997 ई0 में डेनमार्क में होने वाली मेडिकल कान्फ्रेंस में यह रहस्योदघाटन किया गया है कि दुनिया में हर साल 16 करोड़ तीस लाख लोग सूज़ाक और आतिश्क का शिकार हो जाते हैं। प्रगतिशील देशों में औरतों की मौत की दूसरी बड़ी वजह यही आतिश्क व सूज़ाक है।

1975 ई0 में इंग्लैंड की अस्पतालों में जिन्सी रोगियों की संख्या चार लाख तीस हज़ार नोट की गयी जिनमें से एक लाख 60 हज़ार औरतें और दो लाख 70 हज़ार मर्द थे। 1978 तक दुनिया एड्स के नाम से परिचित न थी याद रहे एड्स अंगेज़ी शब्द Acquired Immane Deficiency Syndrom का सार है जिसका मतलब है शरीर की सुरक्षा व्यवस्था की तबाही के लक्षण। आज़ाद जिन्सपरस्ती के नतीजे में सामने आने वाली यह ख़तरनाक बीमारी प्रगतिशील देशों में भयानक प्रकोप का रूप ले चुकी है। अमेरिका में इस समय एड्स के रोगियों की संख्या एक करोड़ पचास लाख है जबकि अफ़रीका में एक मोटे अनुमान के अनुसार यह संख्या सात करोड़ पचास लाख तक पहुँच चुकी है। अन्तर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन WHO की रिपोर्ट के अनुसार प्रगतिशील देशों को केवल एड्स से बचने के लिए ड़ेढ़ अरब डालर सालाना ख़र्च करने पडेंगे। (तकबीर, 10 अक्टूबर 1992, उकाज़ अरबी दैनिक जद्दा 8 जून 1993)

अमेरका वैज्ञानिक डा0 स्ट्रकर ने एड्स पर अपना एक तहक़ीक़ी लेख प्रकाशित किया है जिसमें उसने लिखा है दुनिया की सारी हुकूमतों को एड्स के बारे में गंभीरता के साथ विचार करना चाहिए वरना इक्कीसवीं सदी में एड्स के कारण बहुत कम इंसान बाक़ी रह जाएंगे जो हुकूमत करने योग्य होंगे। (तकबीर 10 अक्टूबर 1992)

जन्म दर में कमी

पश्चिम में आज़ाद व्यभिचार व वासना के कल्चर ने अन्तर्राष्ट्रय स्तर पर पश्चिमी देशों की आबादी पर कितने नकारात्मक प्रभाव अंकित किए हैं इसका अनुमान इस समाचार से लगाया जा सकता है-

ब्रिटेन मे मुसलमानों की संख्या ईसाइयों में थूडिस्ट सम्प्रदाय से बड़ गयी है। स्थानीय समाचार पत्र डेली एक्सप्रेस के अनुसार इसका कारण मुसलमानों का मज़बूत पारिवारिक निज़ाम है जबकि अंग्रेज़ लोग गर्लफ्रेंड बनाकर जवानी गुज़ार देते हैं। गर्भपात की दवाएं इस्तेमाल करते हैं। शादी करते हैं मगर अधिकांश शादियाँ तलाक़ पर ख़त्म हो जाती हैं इसलिए उनकी संख्या मुसलमानों से कम हो रही है।

1991 ई0 में अमेरिकी पत्रकार वाइल बर्ग ने अपनी पुस्तक ‘‘पहली अन्तर्राष्ट्रीय क़ौम’’ में लिखा है कि यह मान लेने के असंख्य कारण हैं कि आने वाले दौर में मुसलमानों के प्रभाव व सम्पर्क में वृद्धि होगी जिसका एक कारण दुनिया भर में मुसलमानों की आबादी की दर में निरंतर होने वाली वृद्धि भी है।

जन्म दर में कमी के कारण दूसरे यूरोपीय देश जिस परेशानी और चिंता का शिकार हैं इसका अनुमान इस समाचार से लगाया जा सकता है कि रोमानिया सरकार ने क़ानून लागू किया है कि पाँच से कम बच्चों वाली औरतें और जिनकी उम्र पचास साल से कम हो गर्भपात नहीं करा सकेंगी और जिन जोड़ों के यहाँ कोई बच्चा नहीं है उन पर टैक्स बढ़ा दिया जाएगा और अधिक बच्चों वाले घरानों को अधिक सुविधाएं दी जाएंगी। यहूदी जोड़ों को इस्राइली प्रधानमंत्री शमऊन ने निर्देश दिया है कि वे अधिक से अधिक बच्चे पैदा करें क्योंकि इस्राईल की आबादी कम हो रही है। यदि आबादी इसी रफ़्तार से घटती रही तो यह बहुत बड़ी राष्ट्रीय हानि होगी। 1991 ई0 में अमेरिकी सेना की योजना के सिलसिले में होने वाली कांफ्रेंस में प्रस्तुत की गयी रिपोर्ट में न केवल मुस्लिम देशों की बढ़ती हुई आबादी पर चिंता व्यक्त की गयी है बल्कि यह भी कहा गया है कि दुनिया की घनी आबादी वाले क्षेत्र मुख्य रूप से मुस्लिम देशों में जंग, गिरोही, राजनीति और परिवार नियोजन द्वारा आबादी को कम करना आवश्यक ह।। (‘‘जंग’’ लाहौर 25 जून 1996, तकबीर 30 मई 1996)

काश मुसलमान इस हक़ीक़त को जान सकें कि अमेरिका और यूरोपिय देशों की ओर से उन्हें परिवार नियोजन के लिए दी जाने वाली आर्थिक मदद का असल उद्देश्य मुस्लिम देशों की भलाई या हित नहीं है बल्कि इसका असल निशाना मुस्लिम देशों को उसकी प्रकोप अर्थात जन्म दर की कमी का शिकार बनाना है जिसमें वे स्वयं फंसे हैं। मुसलमानों के दीन और दुनिया की भलाई रसूले अकरम सल्ल0 के इसी कथन में मौजूद है कि- ‘‘अधिक बच्चे जनने वाली औरतों से निकाह करो क़ियामत के दिन मैं दूसरे नबियों के मुक़ाबले में तुम्हारी वजह से अपनी उम्मत की अधिक संख्या चाहता हूँ।’’ (अहमद, तबरानी)
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