Islamic Marriage Part 05 : औरत व मर्द की समानता और स्वतंत्रता


औरत व मर्द की समानता और स्वतंत्रता

Equality and freedom of man and woman 

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन वस्सलातु वस्सलामु अला सय्यिदिल मुर्सलीन वल आक़िबतु लिल मुत्तक़ीन, अम्मा बाद!

वायस आफ़ जर्मनी की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में औरतों को मर्दों के मुक़ाबले में कम वेतन मिलता है। जर्मनी में समाजी मदद पर गुज़ारा करने वाले मजदूरों में अधेड़ उम्र औरतों को अनुपात 90 प्रतिशत है जिन्हें बुढ़ापे की पेन्शन नहीं मिलती। जर्मनी मे काम करने वाली तीन चैथाई औरतों की आमदनी इतनी नहीं होती कि वे अकेली घर का ख़र्च चला सकें। जर्मनी में उच्च पदों पर काम करने वाली चालीस हज़ार औरतें मर्दों की हिंसा के कारण घर से भाग कर सुरक्षा गुहों में शरण लेती हैं।

औरत मर्द की समानता के सबसे बड़े दावेदार देश अमेरिका की सुप्रम कोर्ट में आज तक कोई औरत जज नहीं बन सकी। फैडरल एपलेट कोई के 97 जजों में से केवल एक औरत जज है। अमेरिकी बार एसोसिएशन में आज तक कोई औरत अध्यक्ष नहीं बन सकी। अमेरिका में जिस काम के लिए मर्द को पाँच डालर मिलते हैं औरत को उसी काम के तीन डालर मिलते हैं। (ख़ातून इस्लाम मौ0 वहीदुद्दीन खां पृ0 73)

1978 में हास्टन अमेरिका में ‘‘महिला स्वतंत्रता आन्दोलन’’ की कान्फ्रेन्स में औरतों ने सरकार से मांग की कि एक ही तरह के काम के लिए मर्दों और औरतों को समान पैसा मिलना चाहिए। जापान में डेढ़ करोड़ औरतें विभिन्न स्थानों पर काम करती हैं। जिनमें से अधिकांश औरतें मर्द अफ़सरों के साथ सहायक के रूप में काम करती हैं। क्या यह बात विचारणीय नहीं कि औरत मर्द की समानता का नारा लगाने वाले देशों ने अपनी सेना में कमांडर इन्चीफ़ के पद पर किसी औरत को आज तक क्यों नहीं नियुक्त किया या कम से कम जरनल के दर्जे पर ही औरतों को मर्दों के समान पद क्यों नहीं दिए जाते? क्या कोई पश्चिमी देश जंग के मैदान में लड़ने वाले सिपाहियों के पदों पर मर्दों व औरतों को समान जगह देने के लिए तैयार हैं? यह है वह औरत मर्द की समानता जिसका प्रोपगंडा दिर रात किया जाता है। औरत मर्द की समानता के अलावा एक और नारा जो आम आदमी के लिए बड़ा आकर्षक रखता है वह है महिला की स्वतंत्रता का। क्या पश्चिम में औरत को हर एक प्रकार की आज़ादी हासि़ल है? यहां हम इसी बात को विस्तार से प्रस्तुत कर रहे हैं-

क्या पश्चिम में औरत को इस बात की आज़ादी हासिल है कि वह घर बैठे हर महीने अपना वेतन वसूल करती रहे? क्या उसे इस बात की आज़ादी हासिल है कि वह यातायात से संबंधित क़ानूनों की पाबन्दी किए बिना अपनी कार सड़क पर चला सके? क्या उसे इस बात की आज़ादी हासिल है कि वह जिस बैंक को चाहे लूट ले? जी नहीं कदापि नहीं। औरत भी देश के क़ानूनों की उसी तरह पाबन्द है जिस प्रकार मर्द पाबन्द है। औरत को तो पश्चिम में इतनी आज़ादी भी हासिल नहीं कि वह ड्यूटी के दौरान अपनी मर्ज़ी का लिबास पहन सके।

नार्वे, स्वेडन और डेनमार्क की एयर लाइन्स की एयर होस्टेस ने एक बार सख़्त ठंड के कारण मिनी स्कर्ट की बजाए गर्म पाजामा इस्तेमाल करने की इजाज़त चाही तो प्रशासन ने यह मांग ठुकरा दी। (नवाए वक़्त 26 जून 1996) औरत को पश्चिम में जिन बातों की आज़ादी हासिल है वे केवल यह हैं- बाज़ार में खुले तौर पर नंगी होना चाहे तो हो जाए, अपनी नंगी तस्वीरें समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में छपवाना चाहे तो छपवा सकती है। फ़िल्मों में नंगे पोज़ देना चाहे तो छूट है। गर्भवती होने के बाद उसे गिराना चाहे तो इजाज़त है। ब्वाय फ्रेन्ड जितनी बार बदलना चाहे बदल सकती है। अपनी औरत साथी के साथ जिन्सी सम्पर्क क़ायम रखने का शौक़ हो तो बिना किसी रोक टोक के क़ायम रख सकती है।

‘‘महिला आन्दोलन’’ की प्रसिद्ध ‘‘नेशनल आर्गनाइज़ेशन फ़ार वीमेन टाइम्स’’ ने जनवरी 1988 के अंक में महिला स्वतंत्रता आन्दोलन के विषय पर लिखते हुए ‘‘महिला स्वतंत्रता’’ का मतलब ही यह बताया कि औरत की वास्तविक आज़ादी के लिए ज़रूरी है कि औरतें आपस में जिन्सी संबंध स्थापित करें। (तकबीर 13 अप्रैल 1995)

मतलब यह कि मर्दों से जिन्सी संबंध बनाए रखने से अपने आपको अगल कर लें। होटलों, कलबों, मारकीटों, सरकारी और ग़ैर सरकारी संस्थानों यहां तक कि सेना में भी मर्दों का दिल बहलाने के लिए ‘‘नौकरी’’ करना चाहें तो कर सकती हैं मानो पश्चिम में औरत को हर उस काम की आज़ादी हासिल है जिससे मर्दों की जिन्सी भावनाओं को तसकीन हासिल हो सके। यह है वह आज़ादी जो पश्चिम में मर्दों ने औरत को दे रखी हैं। यदि इसके अलावा औरतों को कोई दूसरी आज़ादी हासिल है तो पश्चिमी सभ्यता के मत वालों से हम विनती करते हैं कि वे कृपया हमें इससे अवगत करें। क्या औरतों की इस आज़ादी को ‘‘महिला की स्वतंत्रता’’ की बजाए ‘‘मर्दों की स्वतंत्रता’’ कहना ज़्यादा उचित नहीं जिन्होंने औरत को आज़ादी के इस आशय से अवगत करके इतना महत्वहीन और मूल्यहीन कर दिया है कि जब चाहें जहां चाहें बिना रोक टोक उसे अपनी हविस का निशाना बना सकते हैं जैसा कि मौजूदा हालात से हमें मालूम पड़ता है? कोई मुसलमान औरत अपने दीन से चाहे कितनी ही अन जान क्यों न हो क्या ऐसी आज़ादी की कल्पना कर सकती है?

पश्चिम के इस आज़ाद जिन्सी समाज ने पश्चिम के लोगों को कैसे कैसे उपहार प्रदान किए हैं, इन उपहारों में पारिवारिक व्यवस्था की बर्बादी, ख़तरनाक रोगों की अधिकता, जन्म की दर में कमी और आत्महत्या के रूझान में वृद्धि सर्वोपरि हैं। इंशा अल्लाह, इसका उल्लेख हम अपने अगले लेख में करेंगे-

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