Worship : पूजा किसकी? عبادت کس کی؟ : Whose Worship


Whose Worship? पूजा किसकी ?

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसने अपनी प्राकृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये समाज की रचना की। गांव, नगर और राष्ट्रों का निर्माण किया | उसने अपने सुख वैभव के लिये अच्छे से अच्छे साधन जुटाये | उदरपूर्ति के लिये उसने अच्छी से अच्छी खेती करनी सीखी, उसके लिये यन्त्र बनाये । परिश्रम से उसने अच्छे अच्छे फल फूलों के बाग-बगीचे लगाये | ज़मीन में हल चला कर बीज बो दिया, छोटा पौधा बाग में लगा दिया वह बढ़ कर वृक्ष बन गया । उस पर फल-फूल लग आये। ज़मीन में डाला हुआ बीज बढ़ कर पौधा हो गया, उसमें अनाज की बालें आ गईं। वह अपने बाग-बगीचों, खेतों खलियानों को अनाज, फल फूल से लदा देख कर झूम उठा। उसे अपनी मेहनत पर गर्व हुआ अपनी बुद्धि पर मान हुआ।

फिर यकायक उसका मन अनुग्रह से भर गया। उसका जी चाहा कि अपना अनुग्रह से ओत-प्रोत मन किसी के आगे प्रस्तुत करे। उसकी आत्मा तड़प उठी कि अपनी श्रद्धा एवं प्रेम के फूल किसी के चरणों में अर्पित करे। उसकी अवचेतना में विभिन्न प्रकार की आकृतियां बनने बिगड़ने लगी । उसको लगा जैसे जन्म जन्मान्तर से उसके मन में कोई छुपा बैठा है, उसके अन्तः मानस पटल पर एक भूली बिसरी धुन्धली सी आकृति उभर आई । उसका मन विहल हो उठा अपने प्रिय इष्ट के चरणों में सर्वसमपर्ण के लिये उसके अन्तराल से आवाज़ आई अपने इष्ट के चरणों में अपनी श्रद्धा के फूल समर्पित कर। किन्तु उसके भ्रमित नेत्र अपने इष्ट को न देख सके। इसकी कुण्ठित बुद्धि विस्मृत प्रभु को न पहचान सकी। वह व्याकुल हो उठा। इसी व्याकुलता में उसने अपना सर धरती की गोद में झुका दिया। जिसकी गोद में उसके हरे-भरे खेत लहलहाये थे। फिर उसने अपनी श्रद्धा के फूल लहराती सरिता की लहरों के आगे भेंट किये जिसने उसके खेत को सींच कर हरा-भरा किया था। फिर श्वेत उज्ज्वल बैलों के चरणों में अपनी श्रद्धा के फूल चढ़ाये और अपने हल को उसने चन्दन, रोली और पुष्प भेंट किये। उसका घर धन धान्य से भर गया। कितना सुन्दर कितना सुहाना लगा उसे यह सब।

फिर एक बार धहकते सूर्य ने लहलहाती नदी के वृक्ष को अपने ताप से सुखा डाला, धरती का सीना प्यास से फट कर टुकड़े-टुकड़े हो गया। हरे-भरे खेत, बाग़-बगी़चे झुलस कर रह गये। उसके बैलों की जोड़ी भूख और प्यास से तड़प कर परलोक सिधार गई। बच्चे भूख से बिलबिलाने लगे। त्राहि-त्राहि मच गयी। अन्न का एक-एक दाना उदराग्नी के भेंट हो गया। कूप तालाब, नाले भी प्यास से त्रसित हो मुंह बनाने लगे। छोटे बड़े पक्षी प्यास से फड़-फड़ा कर दम तोड़ने लगे। मनुष्य को लगा जैसे क़यामत आ गई।

और तभी ताप से चटकती हुई पहाड़ी, धाटियों से एक शीतल समीर का झोंका त्रसित आत्मा को गुदगुदा गया। पूरब से एक बादल का टुकड़ा आकाश में आकर इठलाने लगा और फिर एक के बाद एक बादल आ आ कर सारे आकाश को आच्छादित करने लगे। देखते ही देखते ठंण्डी फुहार धरती की प्यास बुझाने लगी। नदी का वक्ष जल से भर कर दोनों पाटों की प्यास बुझाने लगा। नदी-नाले इठला-इठला कर बहने लगे। खेत खलिहान हरे-भरे होकर लहराने लगे। गांव की ग्वालने टोलियों के रूप में मधुर गीत गाती निकल पड़ीं। बूढ़े, यूवा सब खुशी से झूम उठे।

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गज गामिनी, युवा महिलायें मेंहदी महावर रचा कर सज धज कर गांव से दूर कूप पूजा के लिये थाल सजा कर, निकल पड़ीं। वायु देवता और जल देवता के नाम की भेंट दी जाने लगी।

जल देवता प्रसन्न हो उठे, वायु देवता अपने भक्तों की भेंट से प्रसन्न होकर बड़े वेग और जोश के साथ, आशीर्वाद देने निकल पड़े। फल फूल से लदे भीम काय वृक्षों को उखाड़ फेंका, झोंपड़ियों को अपने आगोश में भर कर ले उड़े बड़ी बड़ी गगनचुम्बी अट टालिकाओं धराशायी करते निकल गये। जल देवता भी इठलाते निकले। खेत खलियान को जलमग्न करके, बस्तियों नगरों को बहाकर समुन्द्र की भेंट कर दिया। मनुष्य को लगा जैसे प्रलय आ गई। मनुष्य बेचारा असहाय अपने इष्टों के ताण्डव नृत्य को खड़ा देखता रहा और अपने भाग्य पर आंसू बहाता रहा। उसका मन अपने इष्ट देवों के प्रति क्रोध और विद्रोह से भर उठा। उसने इन झूठे और बेवफ़ा देवों को परित्याग करके महादेव के शरण में जाने की ठानी और निकल पड़ा देवों के देव महादेव की खोज में। वन, उपवन, पहाड़, धाटी, नदी, नाले, समुन्द्र सब में ढूँढता फिरा पर महादेव को न पा सका। उसको न पा सका जो उसकी इस महाकाल से रक्षा कर सके।

थका-हारा, अशान्त, बेचारा मानव धबरा कर आंख मूंद कर बैठ गया। अपना सर धुटनों में छुपा लिया। अपने अज्ञान पर फूट-फूट कर रोया। प्रकृति उसकी इस दशा पर हंसती रही। उसकी मूर्खता पर उसकी हंसी उड़ाती रही।

पर ब्रह्म परमात्मा अपने बन्दे की इस दयनीय दशा को न देख सका। उसका मन पसीज उठा। उसने अपने बन्दे के कल्याण के हेतु अपना सन्देश उस भटके राही के पास भेजा, सन्देश बड़ी स्नेहमयी वाणी में बोला |

“उठ दुखित मत हो, सत्य को जान, मुझे तेरे प्रभु ने तेरा दुःख हरने के लिये भेजा है, झूठे देवी-देवताओं के बन्धनों को तोड़ फेंक, तू किसी का दास नहीं, अपने सच्चे प्रभु को पहचान। अज्ञान को छोड़ और उसकी शरण में जा जिसने वन, पहाड़, उपवन, नदी, वायु, सूर्य और अग्नि को तेरी सेवा के लिये बनाया है। तुझे भेजा है उसी प्रभु ने इस पृथ्वी पर, समस्त उपलब्धियों से लाभ उठाता अपना जीवन व्यतीत कर। उसी की दास्ता स्वीकार कर उसी की पूजा कर। ये जल, वन, उपवन, सूर्य, पृथ्वी, आकाश, वायु, नक्षत्रगण सब उसी ने बनाये हुए हैं। उसी के बनाये क्रम में बंधे ये सब अपने अपने काम में व्यस्त हैं, इनका दास मत बन, ये तो स्वयं तेरे प्रभु के दास हैं। उठ और सर्वशक्तिमान, सारे ब्रह्माण्ड के प्रभु के आगे अपना मस्तक झुका। वही तुझे इस महाकाल से बचाकर शान्ति और सम्पन्नता प्रदान करेगा। तेरा कल्याण उसी एक प्रभु के चरणों में निहित है।


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